Samba Sadashiva
सांबा सदाशिव शब्द एक पवित्र मंत्र है जो भगवान शिव को समर्पित है। शिव, जो संहार और परिवर्तन के देवता हैं, उनके अनंत रूप को यह मंत्र संबोधित करता है।
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विनायक जी की कहानी, Vinayak Ji Ki Kahani एक मेंढक और मेंढकी थे। मेंढकी रोज़ गणेश जी की कहानी कहती थी। एक दिन मेंढक बोला कि तू पराये पुरुष का नाम क्यों लेती है ?अगर तू लेगी तो मैं तुझे मारूंगा।
राजा की दासी आयी तो पतीले में डालकर अंगीठी पर चढ़ा दिया। जब दोनों सिकने लगे तो मेंढक
विनायक जी की कहानी, Vinayak Ji Ki Kahani एक गांव में एक भाई-बहिन रहते थे। बहिन का नियम था कि वह भाई का मुंह देखकर ही खाना खाती थी। बहिन की दूसरे गांव में शादी कर दी गई। वह ससुराल का सारा काम खत्म करके भाई का मुंह देखने आती। रास्ते में झाडियां ही झाडियां थी। उन्हीं झाड़ियों के बीच
विनायक जी की कहानी, Vinayak Ji Ki Kahani एक विधवा मालिन थी। उसके चार साल का बच्चा उसकी सास उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थी। एक दिन की बात सास ने पोते-बहू को घर से निकाल दिया। इधर-उधर भटकने के बाद मां-बे एक पेड़ के नीचे बैठ गए। वहां सामने ही बिन्दायकजी का मंदिर था। मंदिर से लौटते वक्त
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एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार के एक बेटी थी । वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी । पीपल के वृक्ष में से लक्ष्मी जी प्रकट होती थी और चली जातीं । एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा – तू मेरी सहेली बन जा । तब लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता
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एक गाँव में एक साहुकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई और बहन में बहुत प्यार था। करवा चौथ के दिन सेठानी ने सातों बहुओं और बेटी के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। सातों भाई हमेशा अपनी बहन के साथ ही भोजन करते थे। उस दिन भी भाईयो ने बहन को खाने के लिए बोला तो
किसी गाँव में एक साहूकार था और उसका एक बेटा व बहू भी थे. बहू कार्तिक माह में रोज सवेरे उठकर गंगा स्नान के लिए जाती थी. सुबह जल्दी जाते समय वह किसी भी पराए पुरुष का मुँह नही देखती थी. एक राजा का बेटा भी सुबह सवेरे गंगा स्नान के लिए जाता था. वह हैरान होता कि मैं इतनी
प्राचीन समय में एक गाँव था जिसमें दो बहने रहा करती थी. एक बहन का नाम गंगा था तो दूसरी बहन का नाम जमुना था. एक बार दोनों बहने एक साहूकार के खेत से गुजर रही थी तो जमुना ने तेरह दाने जौ के तोड़ लिए जिसे देख गंगा बोली कि तुझे तो ग्रहण लग गया तूने चोरी की है.
कार्तिक महीने में सब औरतें तुलसी माता को सींचने जाती । सब तो सींच कर आतीं परन्तु एक बुढ़िया आती और कहती कि हे तुलसी माता ! सब की दाता मैं तेरा बिडला सींचती हूँ ; मुझे बहू दे , पीले रंग की धोती दे , मीठा – मीठा गास दे , बैकुण्ठ में वास दे , चटक की चाल
एक बार गणेश जी एक छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचे में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो। एक बुढ़िया बैठी हुई थी उसने कहा ला मैं बना दूं वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तब गणेश जी ने कहा कि
एक गूज़री थी । उसने अपनी बहू से कहा कि तू दूध – दही बेच आ । तो वह दूध – दही बेचने गई । कार्तिक महीना था । वहां पर सब औरतें पीपल सींचने आती थीं तो वह भी बैठ गई और औरतों से पूछने लगी कि तुम क्या कर रही हो ? तो औरतें बोलीं कि हम तो
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया। जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।। ओम जय करवा मैया। सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी। यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी।। ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया। जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती। दीर्घायु पति होवे ,
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