एक गांव में एक ब्राह्मण व उसकी पत्नी रहते थे । ब्राह्मण देव बड़े ही श्री गणेश भक्त थे। उसने अपने घर में ही एक छोटा-सा सुन्दर-सा भगवान श्री गणेश का मंदिर बना रखा था। मूर्ति स्थापित कर रखी थी । वह प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर अराध्य देव की पूजा अर्चना, धूप दीप करते थे । घन्टों गणेश चालीसा, स्तुति आदि का पाठ किया करते थे। आरती के समय झालर घंटी आदि की आवाज से ब्राह्मणी बहुत परेशानहोती थी।
उसने एक दिन भगवान गणेश की मूर्ति कौने में छिपाकर ढक कर रखा दी और सोचने लगी कि देखें ? ये अब कैसे पूजा करते हैं। तभी कुछ समय बाढ़ ब्राह्मण देव स्नान करके कमरे में मंदिर के पास पधारे और मूर्ति को वहां न पाकर
उदास मन से अपनी पत्नी से क्रोधित होकर पूछने लगे। तब स्त्री कुछ नहीं बोली । इतने में ही श्री गणेश को बहुत जोर से हंसी आ गई। ब्राह्मण व ब्राह्मणी ने कपड़ा हटाकर देखा । भगवान श्री गणपति की मूर्ति जोर-जोर से हंस रही थी।
दोनों पति-पत्नी उनके चरणों में नतमस्तक हो गए। बारम्बार प्रणाम करने लेग और अपने व्यवहार के लिए पत्नी क्षमा याचना करने लगी। रिद्धि-सिद्धि के दाता श्री गजानन्द महाराज बोले कि मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूं। यह कहकर उन्होंने उसके घर को धन वैभव हीरे, मोती से भर दिया। पुत्र -प्राप्ति व सुख-खाति का वरढान देकर अन्तर्धान हो गए।
ब्राह्मण देवता ने उस धन से बहुत बड़ा भवन व बहुत बड़ा पास में ही श्री शंकर पुत्र श्री भगवान गणेश जी का मंदिर बनवाया।
नवें महीने उनके बाग में एक फूल खिला अर्थात् पुत्र ने जन्म लिया तीनों प्राणी सुख से रहने लगे। और भगवान की कृपा
से उनके चरणों में अपना जीवन बिताने लगे। हे ! गणपति देव ब्राह्मण देवता की तरही हमारी भक्ति से भी प्रसन्न होइये और हमें भी अपने स्वरूप का साक्षात् दर्शन दीजिए।