Vinayak Ji Ki Kahani विनायक जी की कहानी ( Bhadrapad Mahina भाद्रपद महीना )

एक ब्राह्मण था, जो नित्य प्रतिदिन सुबह उठकर गंगा जी में स्नान के लिए जाता और फिर बिंदायक जी की पूजा करता था, साथ ही बिंदायक जी की कहानियां सुनता था। उसकी पत्नी को इस पूजा करने से अच्छा नहीं लगता था, और वह गुस्से में हो जाती थी। वह कहती थी कि सुबह पहले काम करो, मैं झाड़ू निकालती हूँ और तुम कुछ नहीं करते हो।

ब्राह्मण उसकी बात को सुनता ही नहीं था। एक दिन ब्राह्मण गंगा जी में स्नान करने गया और पीछे से ब्राह्मणी ने बिंदायक जी की मूर्ति छुपा ली। वापस आकर ब्राह्मण ने कहा कि बिंदायक जी की मूर्ति कहां गई है, तो ब्राह्मणी बोली कि मुझे तो नहीं पता कहां गई। ब्राह्मण ने खाना नहीं खाया और पानी भी नहीं पिया, और फिर कहा कि तब तक वह अन्न और पानी नहीं ले सकता जब तक वह बिंदायक जी की पूजा नहीं करता। मैं तो बिंदायक जी की पूजा करके ही अन्न और पानी लूंगा।

ब्राह्मणी ने ब्राह्मण को बहुत समझाया कि अब खाना खा लो, लेकिन उसने नहीं खाया। दोनों को देखकर लड़का ने ब्राह्मणी के प्रति सहानुभूति दिखाई और बोला कि मूर्ति को बाहर रखो और खाना खाने दो। ब्राह्मणी बोली, “इसके बाद मैं भी बिंदायक जी की पूजा करूंगी और उनका आशीर्वाद लूंगी।”

इसके बाद ब्राह्मण ने बिंदायक जी की पूजा की और उन्हें खुश किया। तब अचानक बिंदायक जी की मूर्ति बोली, “तुझे क्या चाहिए?” ब्राह्मण ने कहा, “मुझे अन्न, धन, सुख, और सभी प्रकार की समृद्धि चाहिए।”

तब बिंदायक जी ने उसे सभी योग्य आशीर्वाद दिए और उसे समृद्धि से भर दिया। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को भी समझाया, और उसने भी बिंदायक जी की पूजा करना शुरू किया।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान की पूजा करने से हमें समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है। भगवान के सेवक बिना किसी भी भय और दुःख के सेवा करते हैं और उन्हें भगवान की कृपा मिलती है।

इसी तरह बिंदायक जी की कहानियां हमें धार्मिक और मानवीय मूल्यों का पालन करने की महत्वपूर्ण शिक्षा देती हैं।

बिंदायक जी की कहानी को सुनने के बाद, हमें बिंदायक जी की पूजा और उनके आशीर्वाद की महत्वपूर्णता का अनुभव होता है और हम भगवान की सेवा करने का संकल्प लेते हैं।

इस प्रकार, बिंदायक जी की कहानी हमें धार्मिकता और सद्गुणों की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है और हमें यह याद दिलाती है कि हमें भगवान की सेवा करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए।

तो बोलो, गजानंद बिंदायक जी महाराज की जय। बिंदायक जी महाराज की जय।

Ek Brahman tha, jo nitya pratyek din subah utthkar Ganga Ji mein snan ke liye jaata aur phir Bindiyaak Ji ki puja karta tha, saath hi Bindiyaak Ji ki kahaniyaan sunta tha. Uski patni ko is puja karne se achha nahi lagta tha, aur vah gusse mein ho jaati thi. Vah kehti thi ki subah pehle kaam karo, main jhaadu nikalti hoon aur tum kuch nahi karte ho.

Brahmani uski baat ko sunti hi nahi thi. Ek din Brahman Ganga Ji mein snan karne gaya aur peeche se Brahmani ne Bindiyaak Ji ki murti chhupa li. Vapas aakar Brahman ne kaha ki Bindiyaak Ji ki murti kahaan gayi hai, to Brahmani boli ki mujhe to nahi pata kahaan gayi. Brahman ne khana nahi khaya aur paani bhi nahi piya, aur phir kaha ki tab tak vah ann aur paani nahi le sakta jab tak vah Bindiyaak Ji ki puja nahi karta. Main to Bindiyaak Ji ki puja karke hi ann aur paani loonga.

Brahmani ne Brahman ko bahut samjhaaya ki ab khana kha lo, lekin usne nahi khaya. Dono ko dekhkar ladka ne Brahmani ke prati sahanubhuti dikhayi aur bola ki murti ko baahar rakh do aur khana khane do. Brahmani boli, “Iske baad main bhi Bindiyaak Ji ki puja karungi aur unka aashirvaad loongi.”

Iske baad Brahman ne Bindiyaak Ji ki puja ki aur unhein khush kiya. Tab achanak Bindiyaak Ji ki murti boli, “Tujhe kya chahiye?” Brahman ne kaha, “Mujhe ann, dhan, sukh, aur sabhi prakar ki samriddhi chahiye.”

Tab Bindiyaak Ji ne use sabhi yogya aashirvaad diye aur use samriddhi se bhar diya. Brahman ne apni patni ko bhi samjhaaya, aur usne bhi Bindiyaak Ji ki puja karna shuru kiya.

Is kahani se hamein yah seekhne ko milta hai ki Bhagwan ki puja karne se hamein samriddhi aur sukh ki prapti hoti hai. Bhagwan ke sewak bina kisi bhi bhay aur dukh ke sewa karte hain aur unhein Bhagwan ki kripa milti hai.

Isi tarah Bindiyaak Ji ki kahaniyan hamein dharmik aur maanaviy mulyon ka palan karne ki mahatvapurn shiksha deti hain.

Bindiyaak Ji ki kahani ko sunne ke baad, hamein Bindiyaak Ji ki puja aur unke aashirvaad ki mahatvapurnata ka anubhav hota hai aur hamein Bhagwan ki sewa karne ka sankalp lete hain.

Is prakar, Bindiyaak Ji ki kahani hamein dharmikta aur sadgunon ki mahatvapurn shiksha deti hai aur hamein yah yaad dilati hai ki hamein Bhagwan ki sewa karne ka nirantar prayas karna chahiye.

To bolo, Gajaanand Bindiyaak Ji Maharaj ki jai. Bindiyaak Ji Maharaj ki jai.

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