एक मेंढक और मेंढकी थे। मेंढकी रोज़ गणेश जी की कहानी कहती थी। एक दिन मेंढक बोला कि तू पराये पुरुष का नाम क्यों लेती है ?अगर तू लेगी तो मैं तुझे मारूंगा।
राजा की दासी आयी तो पतीले में डालकर अंगीठी पर चढ़ा दिया। जब दोनों सिकने लगे तो मेंढक बोला ,”मेंढकी बहुत कष्ट हो रहा है। तू गणेशजी को याद कर ,नहीं तो हम दोनों मर जायेंगे। “तब मेंढकी ने सात बार “विन्दायक जी -विन्दायक जी ” कहा ।
तभी दो सांड वहाँ लड़ते हुए आये और पानी के पतीले को गिरा दिया। मेंढक और मेंढकी तालाब में चले गए।
हे बिन्दायक जी !जैसे मेंढक – मेंढकी का कष्ट दूर किया ,वैसे सबका करना।
बोलो बिन्दायक जी महाराज की जय !!!