तिल चौथ की कहानी – किसी शहर में एक सेठ – सेठानी रहते थे । उनके कोई भी संतान नहीं थी । इससे दोनों जने दुःखी रहते थे । एक बार सेठानी ने पड़ोसियों की स्त्रियों को तिल चौथ व्रत करते हुये देखा तो पूछा आप किस व्रत को कर रही हैं । इसके करने से क्या लाभ होता है । औरतें बोली कि यह चौथ माता का व्रत है । इसको करने से धन – वैभव , पुत्र , सुहाग आदि सब कुछ प्राप्त होता है ।
घर में सुख – शांति का वास होता है । तब सेठानी बोली कि यदि मेरे पुत्र हो जाए तो मैं चौथ माता का व्रत करके सवा किलो तिल कुट्टा चढ़ाऊंगी । कुछ दिन बाद में वह गर्भवती हो गयी , तब भी भोग नहीं लगाया और चौथ माता से बोली कि हे चौथ माता यदि मेरे पुत्र हो जाए तो मैं ढ़ाई किलो का तिल कुट्टा चढ़ाऊंगी । गौरी पुत्र गणेश जी व चौथ माता की कृपा से उसको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । पर उसने तिल कुट्टे का भोग नहीं लगाया ।
फिर जब वह लड़का बड़ा हुआ तो सेठानी बोली कि इस लड़के का विवाह तय हो जाये तो सवा पाँच किलो का तिल कुट्टा चढ़ाऊँगी । भगवान गजानन्द व तिल चौथ माता की कृपा से सेठानी के पुत्र की सगायी अच्छे कुल की कन्या से हो गयी और लग्न मण्डप में फेरे होने लगे । लेकिन दुर्भाग्यवश सेठानी फिर भी चौथ माता के तिल कुट्टे का भोग लगाना भूल गयी । तब चौथ माता व श्री भगवान गणेश उस पर कुपित हो गये ।
अभी फेरों के वक्त में तीन ही फेरे हुये कि चौथ माता अपना कोप दिखाती हुई आयी व दूल्हे राजा को उठा के ले गई और गांव के बाहर पीपल के पेड़ पर छिपा दिया । सब लोग अचम्भे में रह गये , कि एकाएक दूल्हा कहां चला गया ? कुछ दिन बाद वह लड़की गणगौर पूजने जाते हुये उस पेड़ के पास से निकली तो पेड़ पर से दूल्हा बना हुआ लड़का बोला ” आओ आओ मेरी अधब्याही पत्नी आओ । ” तो वह भागी हुई अपने घर गयी और अपनी माता को सब घटना कह सुनायी ।
यह समाचार सुनते ही सभी परिवार जन वहां पहुँचे और देखा कि यह तो वही जमाई राजा है , जिसने हमारी बिटिया से अधफेरे खाये थे और उसी स्वरूप में पीपल पर बैठें है । तो सभी ने पूछा कि आप इतने दिनों से यहां क्यों बैठे हो , इसका क्या कारण है । जमाई राजा बोले मैं तो यहाँ चौथ माता के गिरवी बैठा हूँ , मेरी माता श्री से जाकर कहो कि वह मेरे जन्म से लेकर अभी तक के बोले हुये सारे तिल कुट्टे का भोग लगाकर और चौथ माता से प्रार्थना करके क्षमा याचना करें ।
जिससे माता की कृपा से मुझे झुटकारा मिलेगा । तब लड़के की सास ने अपनी समधन को जाकर सारा हाल सुनाया । तब दोनों समधनों ने सवा – सवा मण का तिल का तिल कुट्टा श्री संकट सुवन गणपति भगवान व चौथ माताजी को चढ़ाया विधि – विधान से पूजन करके तिलकुट चौथ की कहानी (tilkut chauth ki kahani) सुनी। तब चौथ माता ने प्रसन्न होकर हर्षित होती हुई बिजली की तरह दूल्हे राजा को वहां से उठाकर फिर वहीं फेरों के स्थान पर लाकर बैठा दिया
वहाँ वर – वधू के सात फेरे पूरे हुये , और वर – वधू सकुशल अपने घर के लिये विदा हुए । चौथ माता की कृपा से दोनों परिवारों में सभी तरह से अमन – चैन व खुशहाली हुई । हे ! चौथ माता जैसा उस लड़के के साथ हुआ वैसा किसी के साथ मत करना। जैसे सेठ और सेठानी को दिया वैसे सबको देना। तिल चौथ की कहानी कहने, सुनने और हुंकारा देने वाले और पूरे परिवार को देना।
बोलो श्री गणेश भगवान व तिल चौथ माता की जय ।।