॥ श्री गणेश मंत्र ॥
श्री गणेश प्रथम मनाऊ,
रिद्धि सिद्धि भरपूर पाऊ।
॥ चालीसा ॥
नमो नमो श्री नागणेच्या माता,
नमो नमो शिव शक्ति माता।
हर रूप में दर्शन दिया,
अनेको भक्त ऊवार दिया।
ज्वाला में तुम बनी हो ज्वाला,
हर संकट को तुमने ही टाला।
चिंतपूर्णी में हर चित्त को पूर्ण करती,
सब की खाली झोली तुम ही भरती।
नागाणा सु चली नागाणी,
हर भक्तों के घर में आवे।
कलयुग में जो तुम्हे मनावे,
उसे अपनी शक्ति दिखावे।
शिव शंकर की तुम हो पटरान,
आदि शक्ति है मत भवानी।
ब्रह्मा की तुम हो ब्रह्माणी माता,
स्वर दो मुझे सरस्वती माता।
श्री राम की तुम बनी जानकी,
सत्य की ओर चली जानकी।
श्री कृष्ण की तुम बनी राधिका,
प्रेम की डोर से बंधी राधिका।
जब जब तुम क्रोध में आवो,
रूप काली का तुम ही बनाओ।
महाकाल की बनी महाकाली,
मुझे अब कल से तुम ही बचाओ।
भूत प्रेत जो भी आवे,
तेरी शक्ति से मुझे छू ना पावे।
तीन लोक में डंका बाजे,
नागणेच्या माता तेरे पर्चे साचे।
श्री विष्णु के साथ तुम्हे मनावे,
अन्न धन लक्ष्मी घर में पावे।
कोडन की तुम करदो कंचन काया,
तेरी महिमा का पार न पाया।
बांझन जो तुम्हे मनाव,
उसे संतान सुख दिलावे।
जो कुंवारी कन्या मनाव,
अपना वर तुमसे ही पावे।
जो विधार्थी तुम्हे मनावे,
अपनी विद्या भरपूर पावे।
जो व्यापारी तुम्हे मनावे,
अपने व्यापार में वृद्धि पावे।
नौ दीपक जो करे हमेशा,
नव दुर्गा का साथ रहे हमेशा।
लापसी चावल को जो भोग लगावे,
अपने रोगो से मुक्ति पावे।
सातम तेरस की जोत जगाव,
सुख शांति घर में पावे।
गुलाब के पुष्प जो तेर चरणों से पावे,
उनकी कैंसर, शुगर तुम ही मिटावे।
जो कोई सच्चे मन से मनावे,
छोटी कन्या का रूप दिखावे।
नागण बन क घर चली आवे,
कभी छम छम करती पायल बजावे।
भक्तों को ऐसे दर्श दिखावे,
तेरी महिमा मुख से वर्णी न जावे।
ऋषि मुनि तेरा पार न पावे,
मै तो एक भोला भक्त हु माता।
पूजा पाठ करना नहीं आता,
जो कोई शंका तेरी शक्ति पर करता,
अपनी करनी वही ह भरता।
नीम के नीचे कोयल गावे,
मोर भी अब नाच दिखावे।
नीम की जो करे रखवाली,
उसके घर में रहे खुशहाली।
नवरात्रो में ऐसी शक्ति,
नौ दीपक अखंड रखती।
अखंड तेरी ज्योत जगे,
भक्तों के सब कष्ट मिटे।
एक हाथ में त्रिशूल रखती,
दूजे हाथ में शंख बजाती।
डम डम तेरा डमरू बाजे,
काला गोरा भैरू नाचे।
जो भी तेरे द्वार पे आवे,
खाली हाथ वो नहीं जावे।
नौ महीने तक नारियल रखावे,
उनकी मनसा पूर्ण करावे।
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे,
शिव शंकर हरी ध्यान लगावे।
कान्हा तेरे दर मुरली बजावे,
सभी देवता मंगल गावे।
सतयुग में मंशा देवी,
त्रेता में राठेश्वरी।
द्वापर में पंखनी देवी,
कलयुग में नागणेची माता।
युगों युगों में तेरी शक्ति,
समझ समझ कर समझ ना शक्ति।
सूरज सामने बना ह मंदिर,
शिव शक्ति नागणेच्या धाम कहलावे।
जिसकी महिमा वर्णी ना जावे,
सूर्यवंशी तेरे ही गुन गावे।
ओस्तवाल क कुल की माता,
आज ललित भक्त तुम्हे मनाता।
सुनो सुनो मेरी भी नागणेची माता,
मेरा अपराध क्षमा कर दीज्यो।
मुझे अपनी शरण में लीज्यो,
मेरी आस को पूर्ण कीज्यो।
अपना दस बना मुझे लिज्यो।
॥ दोहा ॥
शरणागत को शरण में रखती,
आई सिँह पर हो के सवार।
शेष नाग पर चढ़ी भवानी,
नागण रूप लियो अवतार।
नागणेची माता चालीसा is a devotional hymn dedicated to Goddess Nagnechi Mata, a revered deity in the region. This chalisa is a collection of forty verses that praise the goddess and seek her blessings. The hymn highlights various aspects of her divine manifestations, her role in different yugas (epochs), and her power to alleviate suffering and grant wishes to her devotees.
Goddess Nagnechi Mata is known for her ability to protect her devotees from all kinds of adversities, including physical and spiritual challenges. The chalisa also describes her various forms and attributes, such as her association with other deities like Shiva, Krishna, and Rama, and her power to grant prosperity, knowledge, and health.