Search
Search

Thu Apr 17, 2025

04:43:46

Search

Thu Apr 17, 2025

04:43:46

गणेश जी की खीर कथा (Ganesh ji Ki Kheer Katha)

एक बार गणेश जी एक छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचे में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो। एक बुढ़िया बैठी हुई थी उसने कहा ला मैं बना दूं वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तब गणेश जी ने कहा कि दादी मां छोटी सी भगोनी मत चढ़ाओ तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो वही चढ़ा दो। बुढ़िया ने वही चढ़ा दिया। वह देखती रह गई कि वह जो थोड़े से चावल उस बड़े बर्तन में डाली थी वह तो पूरा भर गया है। गणेश जी ने कहा “दादी मां मैं नहा कर आता हूं।” खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया के पोते पोती खीर खाने के लिए रोने लगे बुढ़िया ने कहा गणेश जी तेरे भोग लगना कहकर चूल्हे में थोड़ी सी खीर डाली और कटोरी भर भरकर बच्चों को दे दी।

बुढ़िया की पड़ोसन ऊपर से देख रही थी तो बुढ़िया ने सोचा यह चुगली कर देगी तो एक कटोरा भर कर उसे भी पकड़ा दिया। बेटे की बहू ने चुपके से एक कटोरा खीर खाई और कटोरा चक्की के नीचे छुपा दिया। अभी भी गणेश जी नहीं आए थे। बुड़िया को भी भूख लग रही थी वह भी एक कटोरा खीर का भरकर के कीवाड़ के पीछे बैठकर एक बार फिर कहा कि गणेश जी आपके भोग लगे कहकर खाना शुरु कर दिया तभी गणेश जी आ गए।

बुढ़िया ने कहा “आजा रे गणेस्या खीर खा ले मैं तो तेरी ही राह देख रही थी” गणेश जी ने कहा “दादी मां मैंने तो खीर पहले ही खा ली” बुढ़िया ने कहा “कब खाई” गणेश जी ने कहा “जब तेरे पोते पोती ने खाई तब खाई थी, जब तेरी पड़ोसन ने खाई तब खाई थी ,और जब तेरी बहू ने खाई तब भी खाई थी और अब तूने खाई तो मेरा पेट पूरा ही भर गया “।
“बुढ़िया ने कहा बेटा और सारी बात तो सच है पर बहू बिचारी का तो नाम मत लो वह तो सुबह से काम में लग रही है उसने फिर कब खाई?”
गणेश जी ने कहा चाची के नीचे देख झूठा कटोरा पड़ा है और तूने तो मेरे भोग तो लगाया वह तो वैसे ही खा गई बुढ़िया ने कहा बेटा घर की बात है घर में ही रहने दो अब बताओ बची हुई खीर का क्या करूं गणेश जी ने कहा नगरी जी जीमा दो बुढ़िया ने पूरी नगरी जीमा दी फिर भी बर्तन पूरा ही भरा था राजा को पता लगा तो बुड़िया को बुलाया और कहा क्यों री बुढ़िया ऐसा बर्तन तेरे घर पर सोवे (अच्छा लगे) या हमारे घर पर सोवे।” बुढ़िया ने कहा “राजा जी आप ले लो”। राजा जी ने खीर का बर्तन महल में मंगा लिया लाते ही खीर में कीड़े, मकोड़े, बिच्छू, कंछले, हो गए और दुर्गंध आने लगी।

यह देखकर राजानी बुढ़िया से कहा, “बुढ़िया बर्तन वापस ले जा,जा तुझे हमने दिया”। बुढ़िया ने कहा “राजा जी आप देते तो पहले ही कभी दे देते यह बर्तन तो मुझे मेरे गणेश जी ने दिया है” बुढ़िया ने बर्तन वापस लिया लेते ही सुगंधित की हो गई घर आकर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा “बची हुई खीर का क्या करें गणेश जी ने कहा “झोपड़ी के कोने में खड़ा खोदकर गाड़ दो ।उसी जगह सुबह उठकर वापस खोदेगी तो धन के दो चरे मिलेंगे”। ऐसा कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए जाते समय झोपड़ी के लात मारते हुए गये तो झोपड़ी के स्थान पर महल हो गया। सुबह बहू ने फावड़ा लेकर पूरे घर को खोद दिया तो कुछ भी नहीं मिला बहू ने कहा “सासु जी थारो गणेश जी तो झूठों है।
सास ने कहा “बहू मारो गणेश झूटों तो नहीं है” “ला मैं देखूं” वह सुई लेकर खोजने लगी तो टन टन करते दो धन के चरे निकल आए बहू ने कहा “सासू जी गणेश जी तो साचों ही हैं। सास ने कहा “गणेश जी तो भावनाओं का भूखा है” यह गणेश जी जैसा आपने बुढ़िया को दिया वैसा सबको देना विनायक जी की कहानी(कथा) कहने वाले हुंकार भरने वाले और आसपास के सुनने वाले सब को देना।

Share with friends

Category

हिंदू कैलेंडर

Mantra (मंत्र)

Bhajan (भजन)

Scroll to Top
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.