एक छोटो सो छोरो आपका घरां से लड़ कर निकलगो और बोल्यो कि आज तो बिन्दायकजी स मिलकर ही घरां पाछो जाऊँगा । छोरो जातो-जातो बावनी-उजाड़ म चल्यो गयो । बिन्दायकजी सोच्या कि यो मेर नाम से घर स निकल्यो है, सो ई न घरां पाछो नहीं भेजागां, तो बाघ-बघेरा खा-जासी।
बिन्दायकजी बोल्या कि म ही बिन्दायकजी हूँ, त न के चाहे है, सो मांग ले, पर एक ही बार म मांगिये। छोरो बोल्यो कि-काई मांगू बापूजी-ढोलो हिंगराज को–पूछो गजराज को- दाल, भात, गींवा का फलका – ऊपर ढबसो खांड़ को-परोसन वाली इसी मांगू-जा न फूल गुलाब की ।
बिन्दायकजी बोल्या की छोरा तू तो सब कुछ मांग लियो पण जा अईयां ही हो जासी। छोरो घरां म आयो देख, तो एक छोटी सी बीननी पीड़ा पर बैठी है और घर म भोत धन हो रयो है। छोरो आपकी माँ न बोल्यो कि माँ देख म विन्दायकजी स मांग क कितनो धन ल्यायो हूँ। माँ खूब राजी होगी। हे बिन्दायकजी महाराज ? जिसो बी छोरा न धन दियो, उसो सबन दिये। कहतां न, सुनतां न, आपना सारा परिवार न देईयो |