अन्नदाता ने अरजी
और आसरो छोड़ आसरो लीनो आसरों कुंवर कल्लाजी को ।
हे राठौड़ कुल भूषण, थे दुःखड़ा कॉटो दुखिया को ॥ और आ.
तरह-तरह रा रोगी आवे, मन में आस लियाथा कि ।
मन चाहा फल पाकर जावे, इच्छा पूरण हो वाकी ॥ और आ.
देश हित आया तज-तोरण, राजपूती शान रखावण में ।
मण्डप छोड़ चालता रण में, देश रो लाज बचावण ने ॥ और आ.
रोगिया रा रोग काट ने, दुखिया रा दुःख मिटाया है ।
है ! शरणागत प्रतिपाल राठौड़ जी, जन-जन ने हर्षाया है।। और आ.
जाणे है, या बात सभीजन संकट मोचन सुखकारी हो ।
शिव-शक्ति रा परम् लाड़ला, दुःखिया रा दुःख हारी हो ।
शिश कट्या धड़ जो लड़ियो, कमधज नाम धारयो थाकी ॥ और आ.
दन दितवार सदा दुःख कारण मईया धाम बिराजे है ।
धीर वीर गम्भीर शूरमा, दुखिया रा दुःख मिटावे है ।। और आ.
दाया हनुमंत बाया भैरू, संकट काटे संता को ।
मन चाहा फल पाकर जावे, निश्चय भरी सो जांण थाको ।। और आ.
नही दान है, नही दक्षिणा नहीं जाणु पूजा थाकी ।
खाली हाथ आयो थारे द्वारे, लज्जा राखो था मां की ।। और आ.
है ! शरणागत प्रतिपाल राठौड़ जी, शरणे आया री लाज राखो ।
गुजा और पुमाप प्रभुवर, अणी ने पुजारी जाणो ॥ और आ.
दान दक्षिणा और निछावर, अणी भीखारी ने जाणो ।
औ दाता दुख भजनवाला, हेलो सुणो ने थे माको ॥ और आ.
ताता-भ्राता, बन्धु बान्धव, हे कल्ला मू कणीने जाणु ।
माता पिता और सगा सम्बन्धी है दाता मू थाने मानू ।
चरणा माही माथे टेकने, दया री भिक्षा मू मांगू ॥ और आ.
चरणा रो चाकर दाता शरणे आया री लाज राखो ।
है ! शरणागत प्रतिपाल कल्लाजी हेलो सुणजो थे माको ।
‘भैरव शंकर री’ अरजीया याही है, दु:ख काटो सदा दुःखिया को ।