### **🙏 खाटू श्याम जी की पौराणिक कथा 🙏**
महाभारत काल में घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को उनकी अद्भुत शक्ति के लिए जाना जाता था। बचपन से ही वे वीर, पराक्रमी और तपस्वी थे। उन्होंने कठोर तपस्या करके माता दुर्गा को प्रसन्न किया और उनसे तीन अमोघ बाण प्राप्त किए, जो इतने शक्तिशाली थे कि केवल तीन बाणों से ही वे पूरे युद्ध का फैसला कर सकते थे। उन्हें भगवान शिव से यह वरदान भी मिला था कि वे अद्वितीय धनुर्धर बनेंगे और युद्ध में अजेय रहेंगे।
जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था, तब बर्बरीक ने अपनी माता से कहा कि वे इस युद्ध में भाग लेना चाहते हैं। उनकी माता ने पूछा कि वे किसका पक्ष लेंगे, तो बर्बरीक ने उत्तर दिया कि वे सदैव पराजित पक्ष का साथ देंगे, क्योंकि एक क्षत्रिय का धर्म है कि वह दुर्बल का सहारा बने। यह सुनकर माता को चिंता हुई, क्योंकि युद्ध में पराजय और विजय पल-पल बदलती रहती है।
बर्बरीक जब युद्ध भूमि की ओर बढ़े, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मार्ग में रोक लिया। वे ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए और बर्बरीक की परीक्षा लेने लगे। उन्होंने बर्बरीक से उनकी शक्ति का प्रमाण मांगा। बर्बरीक ने कहा कि वे केवल तीन बाणों से पूरे युद्ध को समाप्त कर सकते हैं। श्रीकृष्ण ने आश्चर्य से पूछा कि यह कैसे संभव है? तब बर्बरीक ने बताया कि पहला बाण सभी उन वस्तुओं को चिन्हित करेगा, जिन्हें वे नष्ट करना चाहते हैं, दूसरा बाण उन सभी को नष्ट कर देगा और तीसरा बाण यदि चाहें तो उन्हें पुनः जीवित कर सकता है।
श्रीकृष्ण ने उनकी शक्ति का परीक्षण करने के लिए एक वृक्ष की सभी पत्तियों को नष्ट करने को कहा। बर्बरीक ने पहला बाण चलाया, जो सभी पत्तियों को चिन्हित करने लगा, लेकिन तभी श्रीकृष्ण ने एक पत्ती को अपने पैर के नीचे छिपा लिया। बर्बरीक का बाण सीधा श्रीकृष्ण के चरणों की ओर बढ़ा, जिससे यह सिद्ध हो गया कि बाण किसी भी स्थिति में अपना लक्ष्य नहीं छोड़ सकता। यह देखकर श्रीकृष्ण गंभीर हो गए।
श्रीकृष्ण को यह ज्ञात हुआ कि यदि बर्बरीक युद्ध में सम्मिलित होते हैं, तो वे अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार पराजित पक्ष का साथ देंगे और इससे युद्ध का संतुलन बिगड़ सकता है। इसलिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान में उनका शीश (सिर) मांग लिया। बर्बरीक एक सच्चे भक्त और वीर योद्धा थे। उन्होंने निःसंकोच अपना शीश दान कर दिया, लेकिन एक इच्छा जताई कि वे पूरे महाभारत के युद्ध को देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उन्हें यह वरदान दिया कि उनका सिर युद्ध क्षेत्र में ऊँचाई पर रखा जाएगा, जिससे वे पूरा युद्ध देख सकें।
बर्बरीक के इस महान बलिदान से श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद दिया कि कलियुग में वे **श्याम के नाम से पूजे जाएंगे और जो भी सच्चे मन से उन्हें पुकारेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।** इसी कारण उन्हें **”हारे का सहारा बाबा श्याम”** कहा जाता है।
महाभारत के युद्ध के कई वर्षों बाद बर्बरीक का शीश राजस्थान के खाटू नामक स्थान में भूमि से प्रकट हुआ। एक राजा को स्वप्न में आदेश मिला कि इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जाए। इसके बाद खाटू में बाबा श्याम का दिव्य मंदिर बना, जो आज भी लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है।
हर साल **फाल्गुन महीने की एकादशी** को खाटू श्याम जी का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। इस दिन बाबा के भक्त दूर-दूर से पैदल यात्रा करके दर्शन करने आते हैं। माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु **”जय श्री श्याम”** के नाम का सच्चे मन से जाप करता है, उसकी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। बाबा श्याम को प्रसन्न करने के लिए भक्त उन्हें **गुलाब के फूल, मिश्री, चूरमा, नारियल और तुलसी दल** अर्पित करते हैं।
आज खाटू श्याम जी केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में भक्तों के आराध्य देव हैं। उन्हें सच्चे मन से याद करने वाला कोई भी भक्त कभी निराश नहीं होता। बाबा श्याम अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं और उन्हें सही मार्ग दिखाते हैं। इसीलिए भक्त उन्हें प्रेम से **”हारे का सहारा बाबा श्याम”** कहते हैं।