तिल चौथ की कहानी ( Til chauth ki kahani ) ( Magh Mahina माघ महीना )

एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी । देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी । देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।

माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। पाँच रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा ( तिल चौथ की कहानी ) सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खायेगी। कथा सुनकर वह जेठानी के यहाँ काम करने चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले – माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी तभी हम भी खाएंगे।

जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊँगा , जब चाँद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊँगा ” देवरानी ने कहा – मुझे तो घर जाना है इसलिए मुझे खाना दे दो ।
जेठानी ने उसे कहा – आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ ?

तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।देवरानी उदास मन से घर चली आई। देवरानी के घर पर पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा। परन्तु जब बच्चो को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।

उसके पति को भी बहुत गुस्सा आया कहने लगा सारा दिन काम करके भी दो रोटी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती हो ? पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से मारा। धोवना हाथ से छूट गया तो पाटे से मारा। वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते रोते पानी पीकर सो गयी।

उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आये और कहने लगे ” धोवने मारी , पाटे मारी , सो रही है या जाग रही है ”
वह बोली “कुछ सो रही हूँ , कुछ जाग रही हूँ ”
गणेश जी बोले ,” भूख लगी हैं , कुछ खाने को दे ”

देवरानी बोली ” क्या दूँ , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं ” जेठानी बचा खुचा खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं , वही खा लो।

गणेश जी ने तिलकुटा खाया और उसके बाद कहने लगे – ” धोवने मारी , पाटे मारी , निमटाई लगी है ! कहाँ निमटे ”
वो बोली ” ये पड़ा घर , जहाँ इच्छा हो वहाँ निमट लो ”
फिर गणेश जी बोले “अब कहाँ पोंछू ”
अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कि कब से तंग करे जा रहे हैं , सो बोली ” मेरे सर पर पोछो और कहाँ पोछोगे ”

सुबह जब देवरानी उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरे-मोती से जगमगा रहा है , सिर पर जहाँ बिंदायकजी पोछनी कर गये थे वहाँ हीरे के टीके और बिंदी जगमगा रहे थे । उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई।

जेठनी मे कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चो को देवरानी को बुलाने भेज दिया । जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी। बच्चे बुलाने गए और बोले – चाची चलो ! माँ ने बुलाया है सारा काम पड़ा है ।

दुनिया में चाहे कोई मौका चूक जाए पर देवरानी जेठानी आपस में कहने का मौके नहीं छोड़ती। देवरानी ने कहा ” बेटा बहुत दिन तेरी माँ के यहाँ काम कर लिया ,अब तुम अपनी माँ को ही मेरे यहाँ काम करने भेज दो ” । बच्चो ने घर जाकर माँ को बताया कि चाची का तो पूरा घर हीरे मोतियों से जगमगा रहा है। जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के पास आई और पूछा कि ये सब हुआ कैसे ? देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला।

घर लौटकर जेठानी ने कुछ सोचा और अपने पति से कहने लागि – आप मुझे धोवने और पाटे से मारो।
उसका पति बोला कि भलीमानस मैंने तो कभी तुम पर हाथ भी नहीं उठाया। मैं तुम्हे धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हूँ। वह नहीं मानी और जिद करने लगी। मजबूरन पति को उसे मारना पड़ा। मार खाने के बाद , उसने ढ़ेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और छीकें में रखकर और सो गयी। रात को चौथ विन्दायक जी उसके भी सपने में आये कहने लगे , “भूख लगी है , क्या खाऊँ ”

जेठानी ने कहा ” हे गणेश जी महाराज , मेरी देवरानी के यहाँ तो आपने सूखा चूटकी भर तिलकुट्टा खाया था , मैने तो झरते घी का चूरमा बनाकर आपके लिए छींके में रखा हैं , फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो ”

गणेश जी बोले ,”अब निपटे कहाँ ”
जेठानी बोली ,”उसके यहाँ तो टूटी फूटी झोपड़ी थी मेरे यहाँ तो कंचन के महल हैं जहाँ चाहो निपटो”
फिर गणेश जी ने पूछा ,”अब पोंछू कहाँ ”
जेठानी बोली “मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो ”

धन की भूखी जेठानी सुबह बहुत जल्दी उठ गयी। सोचा घर हीरे जवाहरात से भर चूका होगा पर देखा तो पूरे घर में गन्दगी फैली हुई थी। तेज बदबू आ रही थी। उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी।

उसने कहा ” हे गणेश जी महाराज , ये आपने क्या किया ” मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे।
जेठानी ने घर और की सफाई करने की बहुत ही कोशिश करी परन्तु गंदगी और ज्यादा फैलती गई। जेठानी के पति को मालूम चला तो वह भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा।

परेशान होकर चौथ के बिंदायक जी से मदद की विनती करने लगी। बोली – मुझसे बड़ी भूल हुई। मुझे क्षमा करो ।
बिंदायक जी ने कहा ” देवरानी से जलन के कारण तूने जो किया था यह उसी का फल है। अब तू अपने धन में से आधा उसे देगी तभी यह सब साफ होगा ” । उसने आधा धन तो बाँट दिया किन्तु मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा । उसने कहा ” हे चौथ बिंदायक जी , अब तो अपना यह बिखराव समेटो ” । वे बोले , पहले चूल्हे के नीचे गाढ़ी हुयी मोहरो की हांडी औरताक में रखी सुई की भी पांति कर। इस प्रकार बिंदायकजी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा करवाकर अपनी माया समेटी।

हे गणेश जी महाराज , जैसी आपने देवरानी पर कृपा करी वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले , सुनने वाले व हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना। किन्तु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना।

Ek sheher mein ek devrani aur jethani rehti thi. Devrani gareeb thi aur jethani ameer thi. Devrani Ganesh Ji ki bhakt thi. Devrani ka pati jungle se lakdi kaat kar bechta tha aur aksar bimaar rehta tha. Devrani jethani ke ghar ka saara kaam karti thi, aur badle mein jethani bacha hua khana, purane kapde, aadi usko de deti thi. Isi se devrani ka parivaar chal raha tha.

Magh mahine mein devrani ne til chouth ka vrat kiya. Paanch rupaye ka til aur gudh lekar tilkutta banaya. Pooja karke til chouth ki katha (til chouth ki kahani) suni aur tilkutta chheenke mein rakh diya aur socha ki chaand ugne par pehle tilkutta aur uske baad hi kuchh khayegi. Katha sunkar woh jethani ke yahan kaam karne chali gayi. Khana banakar jethani ke bachchon se khana khane ko kaha to bachche bole – “Maa ne vrat kiya hai aur Maa bhookhi hai. Jab Maa khana khayegi tabhi hum bhi khayenge.”

Jethji ko khana khane ko kaha to jethji bole, “Main akela nahi khaoonga, jab chaand niklega tab sab khayenge tabhi main bhi khaoonga.” Devrani ne kaha – “Mujhe to ghar jana hai, isliye mujhe khana dedo.” Jethani ne use kaha – “Aaj to kisi ne bhi abhi tak khana nahi khaya hai, tumhein kaise de doon? Tum subah savere hi bacha hua khana le jana.” Devrani udas mann se ghar chali aayi.

Devrani ke ghar par pati, bachche sab aas lagaye baithe the ki aaj to tyohar hai, isliye kuch pakwaan aadi khane ko milega. Parantu jab bachchon ko pata chala ki aaj to roti bhi nahi milegi to bachche roone lage. Uske pati ko bhi bahut gussa aaya, kehne lage saara din kaam karke bhi devrani do roti nahi laa sakti, to kaam kyun karti ho? Pati ne gusse mein aakar patni ko kapde dhone ke dhovne se mara. Dhovna haath se chhoot gaya to paate se mara. Vah bechaari Ganesh Ji ko yaad karti hui rote rote paani pi kar so gayi.

Us din Ganesh Ji devrani ke sapne mein aaye aur kehne lage, “Dhovne maari, paate maari, so rahi hai ya jag rahi hai.” Voh boli, “Kuch so rahi hoon, kuch jag rahi hoon.” Ganesh Ji bole, “Bhookh lagi hai, kuch khane ko de.”

Devrani boli, “Kya doon, mere ghar mein to ann ka ek daana bhi nahi hai.” Jethani bacha khucha khana deti thi, aaj vo bhi nahi mila. Pooja ka bacha hua tilkutta chheenke mein pada tha, vahi kha lo.”

Ganesh Ji ne tilkutta khaya aur uske baad kehne lage – “Dhovne maari, paate maari, nimtaai lagi hai! Kahaan nimte.” Voh boli, “Ye pada ghar, jahaan ichha ho vahaan nimat lo.” Phir Ganesh Ji bole “Ab kahaan ponchu.” Ab devrani ko bahut gussa aaya ki kab se tang kar rahe hain, so boli “Mere sar par poncho aur kahaan ponchoge.”

Subah jab devrani uthi to yeh dekhkar hairaan rahi ki pura ghar heere-moti se jagmaga raha hai, sir par jahan bindaayakjee ponchhni kar gaye the vahan heere ke tike aur bindi jagmaga rahe the. Us din devrani jethani ke kaam karne nahi gayi. Khana banakar jethani ke bachchon se khana khane ko kaha to bachche bole – “Chachi chalo! Maa ne bulaya hai saara kaam pada hai.”

Duniya mein chahe koi mauka chhuk jaye par devrani jethani aapas mein kehne ka mauka nahi chhodti. Devrani ne kaha, “Beta bahut din teri Maa ke yahan kaam kar liya, ab tum apni Maa ko hi mere yahan kaam karne bhej do.” Bachche bulaane gaye aur bole, “Chachi, chalo! Maa ne bulaya hai saara kaam pada hai.”

Devrani ke pati ko bhi pata chala to vah bhi bahut gussa hua aur bola tere saath maine to kabhi tum par haath bhi nahi uthaya. Main tumhe dhovne aur paate se kaise maar sakta hoon? Vah nahi maani aur jid karne lagi. Mazbooran pati ko use maar dena pada. Maar khane ke baad, usne dher saara ghee daalkar choorma banaya aur chheekon mein rakhkar so gayi. Raat ko chouth vinayak ji uske bhi sapne mein aaye aur kehne lage, “Bhookh lagi hai, kya khaaun.”

Devrani ne kaha, “Hey Ganesh Ji Maharaj, meri devrani ke yahan to aapne sukha chutki bhar tilkutta khaya tha, maine to jharate ghee ka choorma banaakar aapke liye chheenke mein rakh diya hai, phal aur meve bhi rakhe hain jo chahein kha lo.”

Ganesh Ji bole, “Ab nipate kahaan.” Devrani boli, “Uske yahan to tuti-footi jhopdi thi mere yahan to kanchan ke mahal hain jahaan chaaho nipato.” Phir Ganesh Ji ne poocha, “Ab ponchu kahaan.” Devrani boli, “Mere laalat par badi si bindi lagakar ponch lo.”

Dhan ki bhookhi jethani subah bahut jaldi uth gayi. Socha ghar heere jawaharat se bhar chuka hoga par dekha to poori ghar mein gandagi faili hui thi. Tez badboo aa rahi thi. Uske sir par bhi bahut si gandagi lagi hui thi. Usne kaha, “Hey Ganesh Ji Maharaj, yeh aapne kya kiya? Mujhse ruth gaye aur devrani par toot gaye.” Jethani ne ghar aur ki safai karne ki bahut koshish ki parantu gandagi aur jyada phailti gayi. Jethani ke pati ko maloom chala to vah bhi bahut gussa hua aur bola tera paas itna sab kuch tha phir bhi tera mann nahi bhara.

Pareshan hokar chouth ke bindaayak ji se madad ki vinati karne lagi. Boli – “Mujhse badi bhool hui. Mujhe kshama karo.” Bindaayak ji ne kaha, “Devrani se jalan ke kaaran tune jo kiya tha, yeh usi ka phal hai. Ab tu apne dhan mein se aadha use degi tabhi yeh sab saaf hoga.” Usne aadha dhan to baant diya par mohron ki ek haandi choolhe ke neeche gaadhi hui thi. Usne socha kisi ko pata nahi chalega aur usne us dhan ko nahi baata.

“Hey Ganesh Ji Maharaj, jaise aapne devrani par kripa ki vaise sab par karna. Kahani kehne vaale, sunne vaale, aur hunkaar bharne vaale sab par kripa karna. Lekin jethani ko jaise saja di vaisi kisi ko mat dena.”

Aarti (आरती )

गुरुवार आरती (Thursday Aarti)
श्री रामचन्द्र आरती (Shri Ramchandra Aarti)
श्री विश्वकर्मा आरती (Shri Vishwakarma Aarti)
कात्यायनी माता आरती (Katyayani Mata Aarti)
श्री सीता जी की आरती (Aarti of Shri Sita ji)
आरती कुंजबिहारी की (Kunj Bihari Aarti)
राधा माता की आरती (Radha Mata's Aarti)
शैलपुत्री माता आरती (Shailputri Mata Aarti)

Chalisa (चालीसा )

श्री काली चालीसा (Shree Kali Chalisa)
श्री गायत्री चालीसा (Shree Gayatri Chalisa)
श्री गणेश चालीसा (Shree Ganesh Chalisa)
श्री संतोषी माता चालीसा (Shree Santoshi Mata Chalisa)
श्री राधा चालीसा (Shri Radha Chalisa)
श्री विष्णु चालीसा (Shri Vishnu Chalisa)
शेषावतार कल्लाजी राठौड़ पच्चीसी (Sheshavtar Kallaji Rathod Pachisi)
श्री शनि चालीसा (Shree Shani Chalisa)

Mantra (मंत्र)

Krishnaya Vasudevaya Haraye Paramatmane Shloka
हनुमान मंत्र (Hanuman Mantras)
शिव मंत्र (Shiva Mantras)
Karpur Gauram
कल्लाजी राठौड़ मंत्र (Kallaji Rathod Mantra)
Samba Sadashiva
श्री गायत्री मंत्र (Gyatri mata Mantra)
श्री बजरंग बाण (Shri Bajrang Baan)

Bhajan (भजन)

अन्नदाता ने अर्जी (Annadaata Ne Arjee)
कल्लाजी हेलो (kallaji helo)
श्री शेषावतार 1008 श्री कल्लाजी भोग-भजन ( आरती ) Shri Sheshavatar 1008 Shri Kallaji Bhog-Bhajan (Aarti)
गातरोड़ जी से प्रार्थना ( कल्लाजी प्रार्थना ) (Prayer to Gatrod ji)
भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे
छोटी छोटी गैया छोटे छोटे ग्वाल
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाये
घर में पधारो गजानन जी मेरे घर में पधारो
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