कार्तिक महीने में सब औरतें तुलसी माता को सींचने जाती । सब तो सींच कर आतीं परन्तु एक बुढ़िया आती और कहती कि हे तुलसी माता ! सब की दाता मैं तेरा बिडला सींचती हूँ ; मुझे बहू दे , पीले रंग की धोती दे , मीठा – मीठा गास दे , बैकुण्ठ में वास दे , चटक की चाल दे और ग्यारस का दिन दे , कृष्णा का कन्धा दे ।
तब तुलसी माता यह बात सुनकर सूखने लगीं तो भगवान ने पूछा- कि हे तुलसी ! तुम क्यों सूख रही हो ? तुलसी माता ने कहा- मेरे मन की मत पूछो । तो भगवान ने कहा कि अगर मैं यह बात नहीं पूछूंगा तो कौन पूछेगा । तो तुलसी माता ने कह कि एक बुढ़िया रोज आती है और यही बात कह जाती है । परन्तु मैं सब बात तो पूरी कर दूंगी लेकिन कृष्णा का कंधा कहां से दूंगी । तो कृष्ण भगवान बोले – कि जब यह मरेगी तो अपने आप कंधा दे आऊंगा । तू बुढ़िया माई से कह दियो । बाद में बुढ़िया माई मर गई ।
सारे गाँव वाले इकट्ठे हो गये और बुढ़िया को ले जाने लगे तो वह इतनी भारी हो गई कि किसी से भी नहीं उठी । तब सबने कहा यह तो इतनी पूजा पाठ करती थी , पाप नष्ट होने की माला फेरती थी , फिर भी भारी हो गई । बूढ़े ब्राह्मण के भेष में भगवान आये और सबसे पूछा कि यह कैसी भीड़ है ? तब आदमी बोले कि यह बुढ़िया मर गई । पापणी थी इसलिए किसी से नहीं उठती । तो भगवान ने कान के पास जाकर कहा कि बुढ़िया माई मन की निकाल ले , पीताम्बर की धोती ले , मीठा – मीठा गास ले , बैकुण्ठ का वास ले , चटक की चाल ले , चन्दन का काठ ले , झालर की झंकार , दाल – भात को जीम और कृष्णा का कंधा ले ।
फिर यह बात सुनकर बुढ़िया माई हल्की हो गई । भगवान जी अपने कंधे पर ले गये और उसे मुक्ति मिल गई । हे तुलसी माता जैसे उसकी मुक्ति करी वैसी हमारी भी करना और जैसे भगवान ने कंधा उसको दिया वैसा हमें भी देना।